Ab Toh Sab Bhagwan Bharose Movie Review

Ab Toh Sab Bhagwan Bharose

Bhagwan Bharose ‘भगवान भरोसे’ नाम के साथ बनी ये फिल्म कई फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई गयी लेकिन अब इसका नाम ‘अब तो सब भगवान भरोसे’ Ab Toh Sab Bhagwan Bharose हो गया है। इसका निर्देशन शिलादित्य वोरा ने किया है। राम जन्मभूमि आंदोलन के शुरुवाती दिनों की पृष्ठभूमि में लिखी गयी ये कहानी सुधाकर नीलमणि की है। जिसमें वास्तविक शिक्षा से दूर होकर धार्मिक शिक्षा में दिलचस्पी रखने वाले दो बालक भोला और शम्भू की दिलचस्प कहानी दिखाई गयी है। जो पंडित जी की पढाई बातों से पूरी तरह धार्मिक दायरे में हो चुके हैं, उन्हें अब ज्ञान, विज्ञान से कोई मतलब नहीं है।

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Ab Toh Sab Bhagwan Bharose Story

अब तो सब भगवान भरोसे फिल्म महाभारत और पूजा-पाठ से शुरू होती एक गांव की कहानी दिखाती है जिसमें धार्मिक आस्था का बहुत महत्त्व है। भोला और शम्भू पंडित जी के ज्ञान में विभोर हैं, उनके पिता बम्बई में कमा रहे होते हैं। भोला को परखने का काम उसके नाना बाबू कभी पतंग से तो कभी किसी और ढंग से करते हैं। वहीं बोकारो बाबा नामक व्यक्ति भी अपनी तथ्य आधारित बातों से इनका दिमाग खोलने का काम करता है। इसमें शिक्षा की आवश्यकता को दिखाया गया है कि अगर सम्यक शिक्षा गांव के बच्चों तक नहीं पहुंची तो कैसे उनका जीवन प्रभावित होता है। नागलोक, नर्कलोक और असुर लोक से होती हुई ये फिल्म मानव धर्म की बात करती है।

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Ab Toh Sab Bhagwan Bharose Cast

इस फिल्म में मुख्य भूमिका में विनय पाठक और मनु ऋषि चड्ढा हैं। उनके अलावा दो बाल कलाकार भी हैं जो भोला और शम्भू का मजेदार किरदार निभा रहे हैं। भोला बने सत्येंद्र सोनी इस फिल्म के असली नायक हैं, वे इस फिल्म में इतने रम गए हैं कि हाफ पैंट में ही बड़े हो जाते हैं। यहाँ बच्चों के नाना बाबू के किरदार में विनय पाठक गांव वालों में भी ज्ञान बाँटते सहज दिखते हैं।  बोकारो बाबा की भूमिका में मनु ऋषि चड्ढा मेहमान कलाकार की भाँति उपस्थित हैं। श्रीकांत वर्मा और मौसमी मखीजा ने भी अपने किरदारों में काफी बढ़िया काम किया है।

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Ab Toh Sab Bhagwan Bharose Verdict

शिलादित्य वोरा अपनी इस पहली फिल्म के लिए बधाई के पात्र हैं। जिस तरह से उन्होंने एकलव्य की इस कहानी को सिनेमाई विस्तार देते हुए एक जरुरी बात कही है। हालाँकि वक़्त इस फिल्म के अनुकूल नहीं है लेकिन अगर इसका सन्देश दर्शकों तक पंहुचा तो वे पिछले बीस सालों की असलियत समझ और सोच पाएंगे। ऐसे और Guthlee Ladoo जैसे डिजिटल कहानियों की आज के वक़्त में काफी जरूरत है।










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